आपका सोचना अपनी जगह ठीक हो सकता है पर यदि आप चोरी करके भूल जाओ तो सजा के पात्र रहोगे या नहीं?
आपने किसी को सताया और आपके अच्छे दिन चल रहे हैं तो जाहिराना तौर पर भूल ही जाओगे पर वह निष्पक्ष निर्विकार परमात्मा आपके भूलने या याद रखने का मोहताज नही वह अपना कर्म करेगा या नही।
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लेकिन परमात्मा तो त्रिकालदर्शी और सर्वशक्तिमान है तो उनको इसकी सजा उसी जन्म में या फिर मृत्यु के तुरंत बाद दे देनी चाहिए थी दूसरा जन्म ही क्यों और अगर दूसरा जन्म तो फिर नर्क किसके लिए है ?
ऐसा भी आप सोच सकते है। पर आप कैसे जान पाऐंगे कि उन्होने ऐसा नही किया या सोचा?
वस्तुतः पाप की गंभीरता से मृत्यु, रोग, दूसरा जन्म, नर्क यातना, रोगयुक्त शरीर आदि बहुत से प्रकार हैं जो दण्ड रूप मे परमात्मा ही निर्धारण करते है।
हमारे कर्म का लोप हो जाए तो हम खुद निर्विकार परमात्मा मे लय होकर मोक्ष पा जाएं। माया मे फंसने का मतलब ही है कि अभी दण्ड मिल रहा है। कोई बच्चा रोगयुक्त, कटे होंठ, बिना हाथ पांव या अन्य विकारों के साथ उत्पन्न होते है तो वो भी दण्डित जीव के ही लक्षण हैं।
जीव भूलवश जैसे पाप करता है वैसे ही उससे पुण्य भी हो जाते हैं वो निर्विकार उसको भी नोट करके उसका गुणा भाग करके हिसाब रखता है।
जैसे कभी दयावश किसी को पानी पिला दिया, किसी को छांव मे बैठा दिया या रोटी ही दे दिया बहुत से पुण्यकर्म अनजाने मे भी हो जाते है।
जो अत्यन्त उत्कट पाप पुण्य है उसको तो तीन दिन, पक्ष, मास या वर्ष मे भी मिल जाता है ऐसा उल्लेख है। बाकी तो केवल वही जानता है कि क्या करना है कब करना है और कैसे करना है पर जैसा हमने आपने किया है वैसा ही प्रतिफल मिलता है यह निश्चित है।