जब ब्राह्मणों के घर ब्रह्मभोज होता था तो उनके यहाँ जो दोना पत्तल लगता था वो मुसहर (महादलित) लेके आता था, जो पानी भरा जाता था वो कहार भरते थे, जो मिट्टी का बर्तन यूज होता था वो कुम्हार बनाते थे।
जो आवश्यक कपड़े लगते थे वो जुलाहे के यहाँ से आते थे, जो जनेऊ होती थी उसे शूद्र कारीगर ही बनाते थे, हाथ में जो कलावा पहनते हैं ये भी शूद्र समाज ही बनाता था, नदी जब पार करते थे तो उसे मल्लाह पार करवाता था, अनाज किसानों के यहाँ से आता था और दूध अहिरों के यहाँ से आता था।
छूत अछूत वाली सारी कहानी यहीं धराशायी हो जाती है, ब्राह्मणों ने ऐसे समाज की रचना की थी जहाँ सबको बराबर काम आवंटित होता था और 90% क्षेत्रों में शूद्रों को आरक्षण दिया गया था, ब्राह्मण सिर्फ शिक्षा का काम संभालते थे और क्षत्रिय राज-काज का, जबकि वैश्य व्यापार का, मैनुफैक्चर सेक्टर
पूरा शूद्रों के हाथों में था
और फिर ब्रिटिश आये, शूद्रों का पूरा मैनुफैक्चरिंग सेक्टर उन्होंने छीना और वो फिर से उबर ना पायें इसके लिए उन्होंने ब्राह्मणों को ही खलनायक बना दिया, जिस मनुस्मृति ने एक आदर्श समाज की रचना की थी उसे ही बदनाम कर दिया गया…