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मनुष्य न चाहते हुए भी कौन-सी शक्ति से प्रेरित होकर अनुचित कार्य कर बैठता है?

अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुष:।
अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजित:।।

भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया–पाप होने का कारण कामना है। भोग भोगने की कामना, पदार्थों के संग्रह की कामना, रुपया, मान-बड़ाई, नीरोगता, आराम आदि की चाहना ही सम्पूर्ण पापों और दु:खों की जड़ है।

रामचरितमानस (सुन्दरकाण्ड, ३८) में गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं

काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ
सब परिहरि रघुबीरहि भजहूँ भजहिं जेहि संत

काम, क्रोध व लोभ हैं पाप का कारण स्त्री-पुत्र आदि भोगों की कामना का नाम ‘काम है इसी कामना के वश होकर मनुष्य चोरी, व्यभिचार आदि पाप करता है।

मन के विपरीत होने पर जो उत्तेजना उत्पन्न होती है उसे ‘क्रोध’ कहते हैं। क्रोधवश भी मनुष्य हिंसा आदि पाप करता है।

धन आदि की बहुत अधिक लालसा को ‘लोभ’ कहते हैं। लोभ केवल धन का ही नहीं होता वरन् संग्रह करने की आदत भी लोभ का परिणाम है। इसके कारण मनुष्य झूठ, कपट, चोरी, विश्वासघात आदि

पाप करता है। इसलिए इन तीन दोषों को ‘आत्मा का नाश करने वाला’ व ‘पाप का बाप’ कहा गया है।

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