भाद्रपद कृष्ण सप्तमी को श्रीजी में प्रभु की छठी का उत्सव मनाया जायेगा.
प्रभु श्रीकृष्ण के प्राकट्य का उत्सव एक वर्ष तक चला और प्राकट्य के छठे दिन पूतना राक्षसी आयी (जिसका प्रभु ने उद्धार किया था).
इस आपाधापी में सभी व्रजवासी, यशोदाजी नंदबाबा,
लाला कन्हैया की छठी पूजन का उत्सव भूल गयीं.
अगले वर्ष जब लाला का जन्मोत्सव मनाने का समय आया तब उनको याद आया कि लाला की छठ्ठी तो पूजी ही नहीं गयी. तब भाद्रपद कृष्ण सप्तमी को जन्माष्टमी के एक दिन पहले श्री कृष्ण का छठ्ठी पूजन किया गया.
इसी कारण पुष्टिमार्ग के सेवा प्रकार में आज का दिवस छठ्ठी उत्सव के रूप में मनाया जाता है.
छठ्ठी में निम्नलिखित बारह वस्तुएं अवश्य चित्रांकित की जाती है:
चंद्र, सूर्य, पटका (वस्त्र), स्वस्तिक, मथनी (मटकी), रवी, वंशी, पलना, खिलौना, पाट, कमल, तलवार एवं इस उपरांत चार आयुध के साथ कुल
16 वस्तुओं और पुष्प लताओं से छठ्ठी की सज्जा की जाती है. श्री हरिराय जी ने बारह शक्तियों को मान्यता दी है अतः षोडश शक्तियुता सृष्टि देवी का पूजन किया जाता है.
यह छठ्ठी गौस्वामी परिवार की सौभाग्यवती बहूजी, बेटीजी व भीतर के सेवकों के परिवार की महिलाऐं मांडती हैं.
नंदबाबा अपने लाला की रक्षा हेतु कुलदेवी की पूजा करवाते हैं इस भाव से छठ्ठी पूजन किया जाता है.
शयन (छठ्ठी पूजन) – कीर्तन-(राग : कन्हरो)
आज छठ्ठी जसुमति के सुतकी चलौ वधावन माई ।
भूषण वसन साज मंगल लै सकल सिंगार बनाई ।।१।।
भली भांत विधि करी बैस बड सुत पायौ नंदराई
पुन्य पुंज फूले व्रजवासी घर घर होत वधाई ।।२।।
पूरन काम भये निजजनके जियेगें यश गाई ।
परमानंद बात भई मनकी मुद मरजाद नसाई ।।३।।